Monday, December 24, 2012

हालात समझ रहा हूँ

देश के हालात समझ रहा हूँ 

है गहराई की बात समझ रहा हूँ 

बहुत कुछ पाया है यारों से 

क्या होती है घात समझ रहा हूँ 

सुख के दिन कब के बीत गए 


क्या होती है रात समझ रहा हूँ 

चोट के घाव तो सब देख रहें है 


क्या होते आघात समझ रहा हूँ 

चोट देकर मरहम लगाने लगे है 


क्या होती खैरात समझ रहा हूँ

दुश्मनों की पहचान तो है


यारों की औकात समझ रहा हूँ 

चोट मुझे लगी दर्द हुआ उसे 


क्या होते जज्बात समझ रहा हूँ 

रचनाकार- श्री वीरेश अरोड़ा "वीर"


निवास- अजमेर, राजस्थान (भारत)


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