Monday, July 23, 2012

पर्यावरण पर सुमित के तड़के


   
उगा रहे  हैं  शहर में, सीमेंट  के  पेड़
पर्यावरण से होती, नित्य  नई  मुठभेड़
    घर – घर में फ्रिज हो गए, घड़े रह गए चंद
     छेद ओजोन  परत का, कभी  न  होगा बंद 
    गाड़ियों की चिल्लम – पों, मचा रही है कहर
   होगा कुछ दिन बाद ही, बहरों का यह शहर
   तप - तप कर धरती बनी, एक खौलती देग
   प्रीतम  वृक्ष   दिखें  नहीं, बरसें  कैसे मेघ
   एसी की  ठंडक  नहीं, मिले  नीम की छाँव
    मनवा बोले चल  सुमित, चलते हैं अब गाँव

4 comments:

  1. पवन *चंदन*July 24, 2012 7:03 AM

    लगता है जाना ही पड़ेगा...

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुमित प्रताप सिंह Sumit Pratap SinghJuly 24, 2012 8:51 PM

      मैं रास्ते में ही खड़ा मिलूँगा, लिफ्ट दे देना.. :)

      Delete
    Reply
  • MOHAN KUMARJuly 24, 2012 1:39 PM

    वाह

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुमित प्रताप सिंह Sumit Pratap SinghJuly 24, 2012 8:52 PM

      शुक्रिया मोहन...

      Delete
    Reply
Add comment
Load more...

मित्रो सादर ब्लॉगस्ते!
कृपया घबराएं नहीं यहाँ कमेन्ट करने से आपका पासवर्ड शेयर नहीं होगा. कमेन्ट करने के लिए या तो अपने गूगल अकाउंट से साइन इन करें या फिर नाम/URL पर क्लिक करके अपना नाम और URLलिखकर कमेन्ट कर दें और यदि इसमें भी दिक्कत हो तो बेनामी पर क्लिक कर अपना कमेन्ट दर्ज कर दें. एक निवेदन है कि कृपया गलत व भद्दे कमेन्ट यहाँ न करें.
धन्यवाद...

Newer Post Older Post Home