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गुस्सा छोड़

Tuesday, August 14, 2012

कविता: मनाएं पन्द्रह अगस्त


पन्द्रह अगस्त पर
आज़ादी है त्रस्त
जनता अभावग्रस्त
अफसर-नेता मस्त।

गुस्से से ऐंठे लोग 
घर में छुप कर बैठे लोग
भूखे पेट बन्दूक लिए
देखो कैसे-कैसे लोग 
कर्फ्यू के बीच में
पुलिस जन की गश्त।

क़र्ज़ से मरते किसान
सस्ता हुआ इंसान
नीची जात, ऊंची जात
दोनों के जल गए मकान
पवन चली मंद-मंद
हो कर भयग्रस्त।

घर में पिटी 
बाहर लुटी
देखने को उसे 
भीड़ जुटी
बीस रुपये में
श्यामा बिक गई
खुशी में  मनाएँ
चलो पन्द्रह अगस्त।
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