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गुस्सा छोड़

Friday, August 1, 2014

शोध (व्यंग्य)


   मेवालाल मस्तपुरा गाँव के मुख्य रास्ते पर खड़ा हुआ था. उस गाँव के प्रधान से मेवा लाल को ज्ञात हुआ था कि जिस जगह वह खड़ा हुआ था वह गाँव की मुख्य सड़क थी. उसने कड़ी मशक्कत की ताकि वह यह जान सके कि आखिर किस कोण से वह सड़क की श्रेणी में रखी जा सकती थी? सड़क होने का कोई भी तत्व उसके भीतर फिलहाल तो कोई दिखाई नहीं दे रहा था. फिर मेवालाल को प्रोफेसर साब ने शोध के लिए भला वह सड़क ही क्यों दी. अब मेवालाल को अपनी थीसिस उसी सड़क पर, जो न होकर भी शायद थी, लिखनी थी. उसको बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था कि गाँव के उस कच्चे रास्ते को सड़क बनाकर वह थीसिस आखिर लिखे भी तो कैसे लिखे? गाँव का प्रधान बेशक कहता रहे कि वह कच्चा रास्ता नहीं डामर की पक्की सड़क है लेकिन उस गाँव के बच्चे-बच्चे ने मेवालाल के पूछने पर साफ़-साफ़ बताया है कि वह सिर्फ और सिर्फ कच्चा रास्ता है. फिर प्रधान के कहने पर कच्चा रास्ता भला पक्की सड़क कैसे बन सकती है. हालाँकि प्रधान ने मेवालाल को सरकारी कागजात दिखाकर अपना पक्ष सही सिद्ध करने की कोशिश की थी. उसने मेवालाल को सरकारी कागजों में सड़क के मौजूद होने के सारे सबूत दिखाये और समझाया कि मेवालाल जिसे कच्चा रास्ता समझने की इतने दिनों से भूल कर रहा था वह वास्तव में पक्की सड़क ही थी लेकिन मेवालाल के मन ने फिर भी कच्चे रास्ते को पक्की सड़क मानने से साफ़ इंकार कर दिया. हालाँकि मेवालाल प्रोफेसर साब का बहुत आदर करता था और वह यह भी जानता था कि प्रोफेसर साब उसे कभी भी गलत निर्देश नहीं देंगे लेकिन जब कहीं पर सड़क नाम की कोई चीज हो ही न तो भला कैसे मान लिया जाये कि वो सड़क है. या फिर ऐसा हो सकता है कि यह कोई दिव्य सड़क हो जो सिर्फ सरकारी कागजों में ही दिखाई देती हो. मेवालाल ने वहीं खड़े-खड़े काफी देर तक गंभीर आत्ममंथन किया और प्रोफेसर साब को फोन मिलाकर उन्हें अपनी शंका से परिचित करवाकर उस कच्चे रास्ते को पक्की सड़क न मानने का निर्णय सुना दिया. बदले में उस ओर से प्रोफेसर साब की फटकार मिली और उन्होंने अगली शाम उसे प्रधान के घर पर हाजिर होने का निर्देश दिया. अगली शाम मेवालाल को प्रधान के घर पर प्रोफेसर साब के साथ-साथ उस क्षेत्र के जिलेदार, तहसीलदार व पटवारी उपस्थित मिले. उस रात को रंगीन बनाने में प्रधान ने कोई कसर नहीं छोड़ी और उसी रात मेवालाल को इस परम ज्ञान की अनूभूति हुई कि जिसे वह इतने दिनों से कच्चा रास्ता समझने की भूल कर रहा था वह तो वास्तव में एक अच्छी-खासी सड़क थी और ऐसी दिव्य सड़कों को सिर्फ दिव्य दृष्टि रखनेवाले ही देख सकते हैं. इस परम ज्ञान को प्राप्त करने के बाद मेवालाल  ने अपनी थीसिस तैयार करने में कड़ा परिश्रम किया. थीसिस तैयार करने में मेवालाल को मस्तपुरा गाँव के प्रधान ने भरपूर सहयोग दिया. थीसिस पूरी होने के बाद प्रोफेसर साब के आशीर्वाद से मेवालाल का शोध कार्य संपन्न हुआ और मेवालाल को मेवालाल से डॉक्टर मेवालाल बनने में अधिक समय नहीं लगा. 

सुमित प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली, भारत 
कार्टून गूगल बाबा से साभार