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वर्दी में कवि और कलाकार

Tuesday, January 5, 2016

कविता : अब वक़्त लात का आया है


बातें-मुलाक़ातें बहुत हो चुकीं 
अब वक़्त लात का आया है
अब तक दूध पिला साँप को 
हमने खुद को ही डसवाया है

वो मर्म नहीं समझेगा कभी भी 
बातों और मुलाक़ातों का
वो पापी है बस पाप करेगा
उसका धर्म है छद्म घातों का
बार-बार धोखा दे उसने 
हम सबको ही बतलाया है
दूध पिला...

कब तक अपने लालों को
हम यूँ ही क़ुर्बान करेंगे
नाश पाप का करने को 
आखिर कब हुंकार भरेंगे
देश के कोने-कोने से
ये प्रश्न उभरकर आया है
दूध पिला...

शांति वार्ता को दे तिलांजलि
अब वीर वार्ता होने दो
भुजा फड़कती हैं वीरों की
अब मारने या मर लेने दो 
भारत माँ को शीश चढ़ाने
टोला वीरों का आया है 
दूध पिला...

मत रोको अब इन क़दमों को
इनको बढ़ते ही जाने दो
पाप की उस नापाक ज़मीं को 
बूटों से रौंद के आने दो 
जय हिन्द के नारों से
अब आसमान थर्राया है
दूध पिला...

लेखक : सुमित प्रताप सिंह
www.sumitpratapsingh.com
चित्र : गूगल से साभार