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शोभना सम्मान - २०१३ समारोह

Monday, March 23, 2015

चंद रुपयों की खातिर देश की पहचान को ख़त्म करने की साज़िश..!!!


जब कुदरत की नियामत ही कहर बन जाए तो फिर किसी के लिए भी इससे बदतर हालात और क्या हो सकते हैं और जब ऐसी स्थिति का सामना किसी मूक जानवर को करना पड़े तो समस्या और भी मुश्किल हो जाती है. बीते कुछ सालों से कुछ ऐसी ही बदकिस्मती का सामना दुनिया भर में विख्यात असम के एक सींग वाले गैंडे को करना पड़ रहा है. इन गैंडों की दुर्लभ पहचान उनका सींग ही उनकी जान का दुश्मन बन गया है. इस छोटे से सींग की खातिर शिकारी इस विशालकाय जानवर का क़त्ल करने में भी नहीं हिचकिचा रहे. गैंडों के बढ़ते शिकार पर पर्यावरण विशेषज्ञों से लेकर राजनेता तक चिंता जता रहे हैं लेकिन गैंडों का शिकार बेरोकटोक जारी है.
असम दुनिया भर में अपने एक सींग वाले गैंडे के लिए विख्यात है क्योंकि दुनिया में सबसे अधिक एक सींग वाले गैंडे असम में ही हैं. राज्य का काजीरंगा नेशनल पार्क इन विशालकाय जानवरों की सर्वाधिक आबादी के कारण विश्व विरासतों की खास सूची में भी शामिल है. 31 दिसंबर 2012 की गणना के मुताबिक पूरी  दुनिया में एक सींग वाले गैंडों की संख्या 3 हज़ार 333 है. इनमें से लगभग 75 फीसदी गैंडे असम में हैं. सिर्फ काजीरंगा में ही दो हज़ार से ज्यादा एक सींग वाले गैंडे हैं. इसके अलावा असम के अन्य क्षेत्रों में भी बड़ी तादात में ये गैंडे मौजूद हैं. सरकारी और गैर सरकारी संगठनों के अथक प्रयासों से एक दशक पहले तक गैंडों के अवैध शिकार पर तक़रीबन रोक लग गयी थी परन्तु 2007 के बाद से इसमें फिर तेज़ी आ गयी है. अब प्रतिवर्ष शिकारियों के हाथों जान गंवाने वाले गैंडों की संख्या बढती जा रही है. आंकड़ों पर नजर डाले तो 2007 में 20 गैंडे मारे गए थे. 2008 में 16, 2009 में 14, 2010 में 18, 2011 में 5 और 2012 में 25 गैंडे मारे गए. हाल ही विधानसभा में पेश की गयी रिपोर्ट में राज्य सरकार ने भी स्वीकार किया है कि 2013 से अब तक 70 से ज्यादा गैंडे मारे गए हैं. 2013 में 37 तो 2014 में 32 और इस साल के शुरूआती तीन महीनों में ही आधा दर्जन से ज्यादा गैंडों की हत्या हो चुकी है. वहीँ, इसी समय अंतराल में 145 गैंडों ने बीमारी का शिकार बनकर दम तोड़ दिया. हालात की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार ने गैंडों के सींग काट देने की योजना ही बना ली थी लेकिन पर्यावरण विदों के विरोध के कारण इस योजना पर अमल नहीं हो पाया है. जानकारों का मानना है कि गैंडों की जान बचाने के लिए उनकी यह अनूठी पहचान ही ख़त्म कर देना उचित नहीं है. दरअसल दुनिया भर में फैली तमाम भ्रांतियों के कारण गैंडे का सींग काफी मंहगे दामों में बिकता है और इस मोटी रकम के लालच में लोग इनका अवैध शिकार करने के लिए खुद की जान से भी खेल जाते हैं.
इसी बीच कभी केंद्र, तो कभी राज्य सरकार गैंडों की सुरक्षा को लेकर कागजों पर बहुत कुछ मजबूत प्रयास करती आ रही है लेकिन अब तक जमीन पर इन प्रयासों का कोई असर नजर नहीं आता. अब नई सरकार ने एक बार फिर स्थानीय युवकों को भर्ती कर एक टास्क फ़ोर्स बनाने का ऐलान किया है ताकि शिकारियों को स्थानीय मदद नहीं मिल सके. अब देखना यह है कि गैंडों के अमूल्य जीवन और बहुमूल्य सींग और सबसे जरुरी देश की इस शान को बचाने में यह योजना कितनी और कब तक कामयाब होती है. वैसे, गैंडों की संख्या बढाने के लिए इन्डियन राइनो विजन 2020 के नाम से एक कार्यक्रम भी शुरू किया गया है. इसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक असम में एक सींग वाले गैंडों की आबादी बढ़ाकर 3 हज़ार करना है. लेकिन यदि शिकारी इसीतरह आसानी से गैंडों को अपना शिकार बनाते रहे तो ऐसे तमाम कार्यक्रम कागज़ों में ही सिमट कर रह जाएंगे और भविष्य में हमारी आने वाली पीढियां इस अद्भुत प्राणी को शायद किताबों में ही देख पाए.


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