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Tuesday, March 19, 2013

शोभना ब्लॉग रत्न सम्मान प्रविष्टि संख्या - 18

यह भाव देना ह्रदय में

संकल्‍पों की हथेलियां श्रद्धा से एकाकार हो 

आज तुम्‍हारे आगे नतमस्‍तक हैं  माँ! 

सर्व मंगल मांगल्‍ये .... का मंत्र 
उच्‍चारण करते हुये 
विश्‍वास से तुम्‍हारे चेहरे पर 
बड़ी आस्‍था से नजरें ठहर जाती हैं 
तुम्‍हारे ओजमय स्‍वरूप पर 
तभी मन की करूणा 
अन्‍तर्तामा से कुछ संकल्पित
भावों को अश्रुमय कर 
जन कल्‍याण की याचना के साथ 
यही दुहराती है 

... 

हे माँ! नवरात्रों के नौ दिन ही नहीं 

इन कन्‍याओं के चरण पखारे जाएँ इनका पूजन हो 
हे माँ! दुर्गे वरदान दे जाओ
हर  माँ  के मन को 
इतनी शक्ति औ इतना सामर्थ्य दो उसे 
कि हर कन्‍या जन्‍म ले सके धरा पर 
सम्‍मान न करे कोई तो कोई बात नहीं 
लेकिन अपमान का अधिकारी 
न बनने पाये कोई 
सबके मन में बस यही भाव तुम जगा जाओ  
तुम्‍हारी उपासना में डूबे भक्‍त
शक्ति की याचना में जब 
हथेलियों को जोड़ 
संकल्‍प ले तुम्‍हारी साधना का 
बखान करें तुम्‍हारी ममता का 
बनने को तुम्‍हारे कृपापात्र पूजन करें 
कन्‍याओं का तब-तब उन्‍हें  माँ!
यह भाव देना ह्रदय में 
यह पूजन व्‍यर्थ हो जाएगा 
यदि कन्‍याओं का ही इस सृष्टि से 
एकदिन अंत हो जाएगा !!!

रचनाकार: सुश्री सीमा सिंघल
रीवा, मध्य प्रदेश 

2 comments:

  1. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)March 19, 2013 at 5:57 PM

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आभार!

    ReplyDelete
  2. Rajendra KumarMarch 20, 2013 at 2:57 PM

    बहुत सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति,आभार.

    ReplyDelete
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सुमित प्रताप सिंह,
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