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Sunday, November 18, 2012

लघुकथाः ठलुआगीरी



       देश-समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जुनून उस पर इस तरह सवार रहता था कि उसे अपने बारे में सोचने का कभी वक्त ही नहीं मिल पाता था। 
 वह दिन भर भूखा-प्यासा रह लेता परन्तु किसी का भला किए बगैर उसे चैन नहीं मिलता था। किसी और के काम आकर उसे जो संतुष्टि मिलती थी वह उसे अपने लिए किए गए किसी काम से कदापि नहीं मिलती थी।

 उसने शादी भी इसीलिए नहीं की कि कहीं बीबी-बच्चों के चक्कर में वह देश-समाज के लिए समय नहीं निकाल पाया तो उसका जीवन निरर्थक हो जाएगा।

 प्रौढ़ावस्था में उसने कुछ हम उम्र लोगों की एक टीम बनाई। उसका कुछ अन्य लोगों के सहयोग से देश-समाज के लिए कुछ और अधिक काम करने का इरादा था।
 उस दिन किसी सामाजिक कार्य के सिलसिले में जब वह अपनी टीम के एक अन्य सदस्य के घर पहुँचा तो उसे देखते ही उस सदस्य की पत्नी बौखला उठी। वह उस पर आग-बबूला होते हुए बोली,‘देखिए भाई साहब, आप इस तरह से समय-बेसमय घर आकर इन्हें तंग न किया कीजिए। अब देखिए न... आप के ऊपर घर-परिवार की कोई ज़िम्मेदारी तो है नहीं, न बीबी, न बच्चे... परन्तु इनका तो अपना पूरा घर-परिवार है। भगवान के लिए प्लीज, इन ठलुआगीरी के कामों में इन्हें न घसीटा कीजिए, मैं आपका बहुत उपकार मानूंगी।’

रचनाकार-श्री किशोर श्रीवास्तव,
संपादक- हम साथ साथ पत्रिका 

संपर्क- 916- बाबा फरीदपुरी,पश्चिमी पटेल नगर, नई दिल्ली-110008
मो. 9868709348 , 8447673015

चित्र गूगल बाबा से साभार 

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!